एक बार अब्दुल कलाम का interview लिया जा रहा था. उनसे एक सवाल पूछा गया.
और उस सवाल के जवाब को ही मैं यहाँ बता रहा
हूँ - सवाल: क्या आप हमें अपने व्यक्तिगत जीवन
से कोई उदहरण दे सकते हैं कि हमें हार को किस
तरह स्वीकार करना चाहिए? एक अच्छा LEADER हार को किस
तरह
फेस करता हैं ? अब्दुल कलाम: मैं आपको अपने जीवन का ही एक अनुभव सुनाता हूँ. 1973 में मुझे भारत के satellite
launch program, जिसे SLV-3 भी कहा जाता हैं, का head बनाया गया । हमारा Goal था की 1980 तक किसी भी तरह से हमारी Satellite
‘रोहिणी’ को अंतरिक्ष में भेज दिया जाए. जिसके लिए मुझे बहुत बड़ा बजट दिया गया और Human
resource भी Available कराया गया, पर मुझे इस बात से भी अवगत कराया गया था की निश्चित समय तक
हमें ये Goal पूरा करना ही हैं । हजारों लोगों ने बहुत मेहनत की । 1979 तक- शायद अगस्त का महिना था- हमें लगा की अब हम पूरी तरह से तैयार हैं। Launch के दिन प्रोजेक्ट Director
होने
के नाते. मैं कंट्रोल रूम में Launch बटन दबाने के लिए गया । Launch से 4 मिनट पहले Computer
उन चीजों की List को जांचने लगा जो जरुरी थी. ताकि कोई कमी न रह जाए. और फिर कुछ देर
बाद Computer
ने
Launch रोक दिया l वो बता रहा था की कुछ चीज़े आवश्यकता अनुसार सही स्तिथि पर नहीं हैं l मेरे साथ ही कुछ Experts
भी
थे. उन्होंने मुझे विश्वास दिलाया की सब कुछ ठीक है, कोई गलती नहीं हुई हैं और फिर मैंने Computer
के निर्देश को Bypass कर दिया । और राकेट Launch कर दिया. FIRST स्टेज तक सब कुछ ठीक रहा, पर सेकंड स्टेज तक गड़बड़ हो गयी. राकेट अंतरिक्ष में
जाने के बजाय बंगाल की खाड़ी में जा गिरा । ये एक बहुत ही बड़ी असफ़लता थी । उसी दिन,
Indian Space Research Organization (I.S.R.O.) के चेयरमैन प्रोफेसर सतीश धवन ने एक प्रेस कांफ्रेंस बुलाई । प्रोफेसर धवन, जो की संस्था के प्रमुख थे. उन्होंने Mission
की
असफ़लता की सारी ज़िम्मेदारी खुद ले लीं. और कहा कि हमें कुछ और Technological
उपायों
की जरुरत थी । पूरी देश दुनिया की Media वहां मौजूद थी़ । उन्होंने कहा की अगले
साल तक ये कार्य संपन्न हो ही जायेगा । अगले साल जुलाई 1980 में हमने दोबारा कोशिश
की
। इस बार हम सफल हुए । पूरा देश गर्व महसूस कर रहा था । इस बार भी एक प्रेस कांफ्रेंस बुलाई
गयी- प्रोफेसर धवन ने मुझे Side में बुलाया और कहा – ” इस बार तुम प्रेस कांफ्रेंस Conduct
करो.” उस दिन मैंने एक बहुत ही जरुरी बात सीखी
- जब असफ़लता आती हैं तो एक LEADER उसकी पूरी जिम्मेदारी लेता हैं और जब सफ़लता मिलती है तो वो उसे अपने
साथियों के साथ बाँट देता हैं ।
साभार - दैनिक समाचार पत्र
॥वन्दे मातरम् ॥
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